ॐ ॥ " माहेश्वर सूत्र " ||
ॐ ॥ " माहेश्वर सूत्र "
अ इ उ ण् ।
ऋ लृ क् ।
ए ओ ङ् ।
ऐ औ च् ।
ह य व र ट् ।
ल ण् ।
ञ म ङ ण न म् ।
झ भ ञ् ।
घ ढ ध ष् ।
ज ब ग ड द श् ।
ख फ छ ठ थ च ट त व् ।
क प य् ।
श ष स र् ।
ह ल् ।
इति माहेश्वराणि सूत्राणि ।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्काम्
नवपञ्चवारम् |
उद्धर्तुकाम: सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे
शिवसूत्रजालम् ।।
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स्वर :- सूत्र क्रमाङ्क १ से ४
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अ इ उ ण् । ऋ लृ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् ।
व्यञ्जन :- सूत्र क्रमाङ्क ५ से १४
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ह य व र ट् । ल ण् ।
ञ म ङ ण न म् ।
झ भ ञ् । घ ढ ध ष् ।
ज ब ग ड द श् ।
ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् ।
श ष स र् । ह ल् ।
हलन्त वाले सभी वर्ण " प्रत्याहार " बनाने के काम मे
आएंगे ।
सूत्र १ से ४ : -
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अ इ उ ण् । ऋ लृ क् । ए ओं ङ् । ऐ औ च् ।
मे से आप हलन्त वर्णो को बाद करेंगे तो आपको सभी
स्वर मिलेंगे ......
>>>> अ इ उ , ऋ लृ , ए ओ , ऐ औ
सूत्र ५ , ६ : -
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ह य व र ट् । ल ण् ।
----- ट् और ण् को बाद करेंगे तो वर्णमाला के "
अन्त:स्थ व्यञ्जन " मिलेंगे ;
सूत्र ७ : -
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ञ म ङ ण न म् ।
----- म् को बाद करेंगे तो वर्णमाला के पाँचवी
सीधी रेखा मे अंकित" अनुनासिक व्यञ्जन " मिलेंगे ;
सूत्र ८ , ९ : -
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झ भ ञ् । घ ढ ध ष् ।
----- ञ् और ष् को बाद करेंगे तो वर्णमाला के " चौथी
सीधी रेखा मे अंकित व्यञ्जन " मिलेंगे ;
सूत्र १० : -
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ज ब ग ड द श् ।
----- श् को बाद करेंगे तो वर्णमाला के " तीसरी
सीधी रेखा मे अंकित व्यञ्जन " मिलेंगे ;
सूत्र ११, १२ : -
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ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् ।
----- व् और य् को बाद करेंगे तो वर्णमाला के " दूसरी
और प्रथम सीधी रेखा मे अंकित व्यञ्जन " मिलेंगे ;
सूत्र १३, १४ : -
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श ष स र् । ह ल् ।
----- र् और ल् को बाद करेंगे तो वर्णमाला के "
ऊष्माण व्यञ्जन " मिलेंगे ;
" ह " वर्ण दो बार आता है .....
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महाभाष्य में " ह " वर्ण का माहेश्वरसूत्रों में दो बार
ग्रहण किये जाने के अनेक प्रयोजन सोदाहरण बतलाये
गये हैं। जिनमें मुख्य दो द्रष्टव्य हैं।
( ०१ ) यदि पूर्व सूत्र ''हयवरट् '' में " ह " ग्रहण न किया
जाता तो
>>>>>>> “ अट् ” को लक्ष्य कर
“ आतो$टि नित्यम् ” इत्यादि सूत्रों की सिद्धि न
होती।
( ०२ ) यदि पुनः हल् सूत्र में " ह " का उपदेश न किया
होता तो
>>>>>>> “ रलोव्युपधाद्धलादेः ” इत्यादि
सूत्रविहित कार्य,
>>>>>>> " अधुक्षम् " इत्यादि में क्सविधि तथा
>>>>>>> " रुदिहि " इत्यादि में इड्विधि
इत्यादि " ह " वर्ण को लक्ष्य कर किये गये कार्य न
होते।
जिज्ञासु को महाभाष्य में " हयवरट् " सूत्र का
विस्तृत भाष्य देखना चाहिए।
हलन्त्यम् ,सूत्र से उपदेश मे आने वाले हलन्त की इत्
संज्ञा होती हैं ,माहेश्वर सूत्र भी उपदेश के अन्तर्गत
आते हैं
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