Tuesday 29 March 2016

"अस्तित्व के साथ जियो और चीजोें को खुद अपने आप घटने दो। यदि कोई तुम्हारा सम्मान करता है,तो यह उसका ही निर्णय है, तुम्हारा उससे कोई संबंध नही। यदि तुम उससे अपना संबंध जोड़ते हो,तो तुम असंतुलित और बेचैन हो जाओगे, और यही कारण है कि यहाँ हर कोई मनोरोगी है। और तुम्हारे चारों तरफ घिरे बहुत से लोग तुमसे यह अपेक्षाएँ कर रहे हैं कि तुम यह करो, वह मत करो। इतने सारे लोग और इतनी सारी अपेक्षाएँ और तुम उन्हे पूरा करने की कोशिश कर रहे हो। तुम सभी लोगों और उनकी सभी अपेक्षाओं को पूरा नही कर सकते। तुम्हारा पूरा प्रयास तुम्हे एक गहरे असंतोष से भर देगा और कोई भी संतुष्ट होगा ही नही। तुम किसी को संतुष्ट कर ही नही सकते, केवल यही संभव है कि केवल तुम स्वयम् ही संतुष्ट हो जाओ। और यदि तुम अपने से संतुष्ट हो गये, तब थोड़े से लोग तुमसे संतुष्ट होंगे, लेकिन इससे तुम्हारा कोई संबंध न हो।
तुम यहाँ किन्ही और लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने, उनके नियमों और नक्शों के अनुसार उन्हे संतुष्ट करने के लिये नही हो। तुम यहाँ अपने अस्तित्व को परिपूर्ण जीने के लिये आये हो। यही सभी धर्मों में सबसे बड़ा और पूर्ण धर्म है कि तुम अपने होने में परिपूर्ण हो जाओ । यही तुम्हारी नियति या मंजिल है, इससे च्युत नही होना है। इससे बढ़कर और कुछ मूल्यवान नही।
किसी का अनुगमन और अनुसरण न कर अपने अन्त: स्वर को सुनो। एक बार भी यदि तुमने अपने अन्त: स्वर का अनुभव कर लिया, तो फिर नियमों और सिद्धाँतों की कोई जरूरत रहेगी ही नही। तुम स्वयम् अपने आप में ही एक नियम बन जाओगे।"

Tuesday 15 March 2016



मौन……
एक फकीर का एक गाँव में आगमन हुआ। एक दिन गाँव के लोगों ने उस फकीर को बोलने के लिए आमंत्रित किया और वो राजी हो गया। पहली बार वो गाँव के लोगों से मुखातिब हुआ और मंच से उसने पूछा कि दोस्तों क्या तुम्हें पता है कि मैं किस विषय पर बोलने आया हूँ? लगभग सारे लोगों का उत्तर “ना” में था। फकीर ने कहा जब आप लोगों को ये तक पता नहीं कि किस विषय पर व्याख्यान होना है, तो आप जैसे लोगों से क्या बोलना और यह कहकर वो चल दिया। दूसरी बार किसी तरह उस फकीर को व्याख्यान के लिए तैयार किया गया और फिर जब वो मंच पर आया तो उसने फिर पूछा कि दोस्तों क्या आप जानते हैं कि मैं आज किसके बारे में बताने आया हूँ? इस बार पहली गलती को ध्यान में रखते हुए सब ने कह दिया कि “हाँ” हम जानते हैं। फिर उस फकीर ने कहा कि जब आप जानते ही हैं तो फिर कुछ भी बोलना व्यर्थ है क्योंकि आप सभी ज्ञानी हैं और वो फिर मंच से उतरकर चल दिया। गाँव वालों ने योजना बनाई थी कि अबके “ना” कोई भी नहीं कहेगा लेकिन “हाँ” भी व्यर्थ चली गयी। फिर सब लोग उस फकीर के पास आमंत्रण लेकर पहुंचे और बोले हमसे भूल हो गयी कृपया आप आयें और हमें कुछ उपदेश दें। वो तो फकीर था ही, अपनी करुणा के कारण वो फिर आया और आते ही उसने फिर पूछा कि क्या आपको पता है कि आज मैं क्या बोलने वाला हूँ? आधे लोगों ने कहा “हाँ” और आधे लोगों ने “ना” में उत्तर दिया। वो फकीर फिर बोला कि जिनको पता है, वो उन लोगों को बता दें जिन्हें पता नहीं हैं। मेरा कुछ कहना व्यर्थ ही जाएगा, अब बोलने का कोई मलतब ही ना बचा और वो फिर मंच से उतरकर चल दिया।
चौथी बार उस गाँव के लोगों की हिम्मत नहीं हुई कि उस फकीर को आमंत्रित करें क्योंकि गाँव वालों के पास तीन ही उत्तर थे, जो वो दे चुके थे और वो तीनों ही व्यर्थ गए। चौथा उत्तर उन लोगों के पास था ही नहीं।
मेरे प्यारे दोस्तों ये प्रश्न हम सबके लिए ही है:
“क्या आपके पास है चौथा उत्तर?
दोस्तों ये चौथा उत्तर वो उत्तर है जो ना तो किसी शास्त्र में मिलेगा और ना ही किसी ग्रंथ में। दुनिया के किसी भी मंदिर, मस्जिद या तीर्थ में ये उत्तर नहीं मिलने वाला। जीवन को जानने के लिए कहो या सत्य तक पहुँचने के लिए, परमात्मा की खोज हो या स्वयं की खोज या फिर आनंद की तलाश, इन सबके लिए वो चौथा उत्तर जरूरी है जो उस गाँव वालों की तरह हमारे पास भी नहीं है। यदि वो उत्तर उस गाँव के लोगों ने दिया होता तो वो फकीर बहुत कुछ दे जाता उनको। वो चौथा उत्तर था उनका चुप रह जाना अर्थात “मौन” है वो चौथा उत्तर। जो मौन होना जान जाए, उसका जानना शुरू हो जाता है। हम बोलने में समर्थ है लेकिन चुप रहने में नहीं। हम शब्दों के साथ खेलने में समर्थ हैं, इसलिए जीवन गंवा देते हैं। जानने के लिए मौन प्रवर्ति चाहिए लेकिन हम तो बोलते ही रहते हैं, जब जागे हों तब भी और जब सोये हों तब भी। सुन केवल वही पाता है जो वास्तव में चुप है, मौन में उतर गया है। जो अपने भीतर भी बोल रहा है वो कैसे कुछ सुन सकेगा? ईश्वर, आत्मा, परमात्मा जैसे शब्द हमारे लिए केवल शब्द ही हैं, हमारा अनुभव नहीं क्योंकि अनुभव होता है मौन में। और मौन रहना हमें कभी आया ही नहीं क्योंकि शब्द तो जन्मों से इकट्ठा किए हैं हमने और जन्मों फिर दोहराये है हमने। बल्कि सच कहा जाए तो ये कहना अनुचित नहीं होगा कि ईश्वर, आत्मा-परमात्मा जैसे शब्द भी हमारे भय या झूठे संतोष के प्रतीक हैं, इनसे कभी वास्ता नहीं पड़ा हमारा। कभी इनको अनुभव किया जाए ऐसा सोचा ही नहीं हमने। कभी प्रार्थना भी की तो ईश्वर को निर्देश दिये हैं हमने कि ये जो मेरे साथ हो रहा है, ये गलत है, इसे सही कर। जो हो रहा है वो गलत है, और तू वो कर जो मैं कह रहा हूँ। अरे ये प्रार्थना है या आदेश? मौन ही असली प्रार्थना है।
सोचिए जरा कि कभी वास्तव में प्रार्थना में उतरे हैं या हमेशा उधार के शब्दों का ही सहारा लिया है उस परमपिता को आदेशित करने के लिए? ये उत्तर भी भीतर के मौन से ही मिलेगा......................

Sunday 13 March 2016

जीवन की प्रत्येक क्रिया तन्त्रोक्त क्रिया है॰यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की
शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य है.


गुरु को आदर देना चाहिए, ऐसा अगर आप मानते हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि आदर देने के लिए विद्यार्थी स्वतंत्र है। दे, तो दे। न दे, तो न दे। और अगर आप ऐसा मानते हैं कि गुरु है ही वही जिसको आदर दिया जाता है, तो विद्यार्थी स्वतंत्र नहीं रह जाता। मेरी दृष्टि में तो गुरु वही है, जिसे आदर दिया जाता है। अगर विद्यार्थी आदर न दे रहे हों, तो बजाय इस चिंता में पड़ने के कि विद्यार्थी कैसे आदर दें, हमें इस चिंता में पड़ना चाहिए कि गुरु हैं या नहीं हैं! गुरु खो गए हैं।
गुरु हो, और आदर न मिले, यह असंभव है। आदर न मिले, तो यह संभव है कि गुरु वहा मौजूद नहीं है। गुरु का अर्थ यह है कि जिसके पास जाकर श्रद्धा— भक्ति पैदा हो। जिसके पास जाकर लगे कि झुक जाओ। जिसके पास झुकना आनंद हो जाए। जिसके पास झुककर लगे कि भर गए। जिसके पास झुककर लगे कि कुछ पा लिया। कहीं कोई हृदय के भीतर तक स्पंदित हो गई कोई लहर।


विभत्स हूँ .. विभोर हूँ ... मैं ज़िंदगी में चूर हूँ ... 
घनघोर अँधेरा ओढ़ के मैं जन जीवन से दूर हूँ .. शमशान में हूँ नाचता .. मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ .. 
साम दाम तुम्हीं रखो .. मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ .. 
चीर आया चरम मैं .. मार आया मैं को मैं .. 
मैं मैं नहीं मैं भय नहीं .. जो तू सोचता हैं वो ये हैं नहीं ..काल का कपाल हूँ .. मूल की चिंघाड़ हूँ .. 
मैं आग हूँ मैं राख हूँ .. मैं पवित्र रोष हूँ .. 
मुझमें कोई छल नहीं .. तेरा कोई कल नहीं .. 
मैं पंख हूँ मैं श्वास हूँ .. मैं ही हाड़ माँस हूँ .. 
मैं नग्न हूँ मैं मग्न हूँ .. एकांत में उजाड़ में .. 
मौत के ही गर्भ में हूँ .. ज़िंदगी के पास हूँ .. अंधकार का आकार हूँ .. प्रकाश का प्रकार हूँ ..
मैं कल नहीं मैं काल नहीं वैकुण्ठ या पाताल नहीं

मैं मोक्ष का ही सार हूँ .. मैं पवित्र रोष हूँ .. मैं ...हूँ .. .

Saturday 12 March 2016

एक प्रेमी-युगल शादी से पहले काफी हँसी मजाक और नोक झोंक किया करते थे।
शादी के बाद उनमें छोटी छोटी बातो पे झगड़े होने लगे।
कल उनकी शादी की सालगिरह थी,पर बिवि ने कुछ नहीं बोला वो पति का रिस्पॉन्स देखना चाहती थी।सुबह पति जल्द उठा और घर से बाहर निकल गया।बिवि रुआँसी हो गई।
दो घण्टे बाद दरवाजे पर घंटी बजी,वो दौड़ती हुई जाकर दरवाजा खोली।दरवाजे पर गिफ्ट और बकेट के साथ उसका पति था।
पति ने गले लगा के सालगिरह विश किया।फिर पति अपने कमरे में चला गया। तभी पत्नि के पास पुलिस वाले का फोन आता है की आपके पति की हत्या हो चुकी है,उनके जेब में पड़े पर्स से आपका फोन नम्बर ढूंढ के कॉल किया।
पत्नि सोचने लगी की पति तो अभी घर के अन्दर आये है।
फिर उसे कही पे सुनी एक बात याद आ गई की मरे हुये इन्सान की आत्मा अपना विश पूरा करने एक बार जरूर आती है।
वो दहाड़ मार के रोने लगी।उसे अपना वो सारा चूमना, लड़ना, झगड़ना,नोक-झोंक याद आने लगा।उसे पश्चाताप होने लगा की अन्त समय में भी वो प्यार ना दे सकी। वो बिलखती हुई रोने लगी।जब रूम में गई तो देखा उसका पति वहाँ नहीं था।
वो चिल्ला चिल्ला के रोती हुई प्लीज कम बैक
कम बैक कहने लगी की अब कभी नहीं झगड़ूंगी।
तभी बाथरूम से निकल के उसके कंधे पर किसी ने हाथ रख के पूछा क्या हुआ?
वो पलट के देखी तो उसके पति थे।वो रोती हुई उसके सीने से लग गइ फिर सारी बात बताई।तब पति ने बताया की आज सुबह उसका पर्स चोरी हो गया था।फिर दोस्त की दुकान से गिफ्ट उधार लिया।
।।जिन्दगी में किसी की अहमियत तब पता चलती है जब वो नहीं होता,
हमलोग अपने दोस्तो,रिश्तेदारो से नोकझोंक करते है,
पर जिन्दगी की करवटे कभी कभी भूल सुधारने का मौका नहीं देती।
हँसी खुशी में प्यार से जिन्दगी बिताइये,
नाराजगी को ज्यादा दिन मत रखिये।
🌸🌹जय श्री राम 🌹🌸

Thursday 10 March 2016

क बहुत समृद्ध महिला अपने चिकित्सक के पास गई। बीमारी उसकी ठीक हो गई थी, चिकित्सक को उसकी फीस चुकाने गई थी। तो उसने एक बहुमूल्य रत्नजटित झोले में कुछ रखकर चिकित्सक को भेंट किया।
चिकित्सक ने कहा कि यह तो ठीक है, लेकिन मेरी फीस का क्या? न तो चिकित्सक समझ सका कि रत्नजटित है, उसने तो समझा कि है बस कांच। कौन रत्नजटित झोले देता है भेंट! और यह महिला सस्ते में निकली जा रही है। उसने हिसाब लगा रखा था, कम—से—कम तीन सौ रुपये उसकी फीस थी। और यह झोला देकर ही बची जा रही है। तो उसने कहा कि झोला तो ठीक है, तुम्हारे प्रेम का उपहार स्वीकार करता हूं लेकिन मेरी फीस का क्या?
उस महिला ने पूछा. तुम्हारी फीस कितनी है? तो ज्यादा से ज्यादा जो वह बता सकता था, उसने कहा, तीन सौ रुपया।
उस महिला ने झोला खोला, उसमें कम—से—कम दस हजार के नोट थे, तीन सौ रुपये निकाल कर चिकित्सक को दे दिए, बाकी रुपये और झोला लेकर वह वापिस चली गई। अब उस चिकित्सक पर क्या गुजरी होगी, तुम सोचते हो! उस दिन के बाद बीमार ही हो गया होगा। उस दिन के बाद फिर उसकी चिकित्सा मुश्किल हो गई होगी। कितना न पछताया होगा! दस हजार रुपये लेकर आयी थी महिला देने और यह तो उसे बाद में पता चला मित्रों से कि वे कांच के टुकड़े न थे, हीरे—जवाहरात थे। मगर उसने सोचा था कि तीन सौ बहुत बड़ी—से—बड़ी फीस।
मांगोगे भी तो क्या मांगोगे? बड़ी से बड़ी मांग भी बड़ी छोटी—से—छोटी होगी, खयाल रखना। इसलिए न मांगो तो अच्छा। वह जो दे, अहोभाव से स्वीकार कर लेना। फायदे में रहोगे। मांगोगे, नुकसान में पड़ोगे। और दुर्भाग्य ऐसा है कि शायद तुम्हें कभी पता भी नहीं चलेगा कि तुम्हें क्या मिल सकता था और क्या मांगकर तुम लौट आए! क्या पा सकते थे, पता भी न चलेगा। उस चिकित्सक को तो खैर पता भी चल गया, तो दुबारा ऐसी भूल न करेगा। मगर तुम्हें पता भी न चलेगा। कौन तुम्हें बताएगा?

Sunday 6 March 2016

यूनान में पुरानी कथा है कि एक ज्योतिषी रात आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ चल रहा था

यूनान में पुरानी कथा है कि एक ज्योतिषी रात आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ चल रहा था, एक कुएं में गिर पड़ा। चिल्लाया, घबड़ाया। पास कोई किसान बूढ़ी औरत ने दौड़ कर रात में इंतजाम किया, लालटेन लाई, रस्सी लाई, उसे निकाला। वह बड़ा प्रसिद्ध ज्योतिषी था। उसकी फीस भी बहुत बड़ी थी। सम्राटों का ज्योतिषी था। साधारण आदमी तो उसके पास पहुंच नहीं सकते थे। उसने कहा: बूढ़ी मां, तुझे पता है मैं कौन हूं? तेरा सौभाग्य है कि तूने यूनान के सबसे बड़े ज्योतिषी को सहायता देकर कुएं से बाहर निकाला है। मेरी फीस इतनी है कि सिर्फ सम्राट चुका सकते हैं। मगर तेरा हाथ और तेरा भविष्य मैं बिना फीस के देख दूंगा। तू सुबह आ जाना।
वह बूढ़ी हंसने लगी। उसने कहा: बेटा, तुझे अपने सामने का कुआं नहीं दिखाई पड़ता, तू मेरा भविष्य कैसे देखेगा? तुझे अपना ही...भविष्य तो छोड़, वर्तमान भी दिखाई नहीं पड़ता। तू पहले रास्ते पर चलना सीख। तू चांदत्तारों पर चलता है!
जिसकी आंखें चांदत्तारों पर लगी हैं, अक्सर हो जाता है कुएं में गिरना। तुम सब भी ऐसे कुएं में ही गिरे हो। आंखें चांदत्तारों पर लगी हैं, यहां देखो तो कैसे देखो! पास देखे तो कौन देखे! तुम्हारे सारे प्राण तो वहां अटके हैं।

Thursday 3 March 2016

Everyone is going through some kind of pain. Remember Pain is for the living, for those of us who still have the chance of a lifetime. Only the dead don’t feel it. But there are always ways to turn your wounds into wisdom and strength. So admit to your emotional pain, so you can deal with it and heal 🍁 Namaste Beautiful People. It's time for Thursday Thoughts 💥🍃🙏🏻 Let go of what used to be and no longer is. You can't do anything about the past, so live in the present. When you realise that none of it is yours, when you’re willing to let go of attaching to anything you consider “mine,” you’re suddenly free. One of the hardest lessons in life is letting go, whether it’s possessions, obsessions, anger, love or loss. Change is never easy, you fight to hold on and you fight to let go. But letting go is always the healthiest path forward. ‪#‎TheShivaTribe‬ It clears out toxic attachments and thoughts from the past. You’ve got to emotionally free yourself from the things that once meant a lot to you, so you can move beyond the past and the pain it brings you. Emotionally detach yourself from your problems. Know that you have the ability to change them, and to change the way you feel about them. Keep calm and focus on the positive. Take what you’ve learned and build something new. Don't see the difficulties in today’s opportunities, see the opportunities in today’s difficulties. Be optimistic and Discover thyself. You’ve been hurt, you’ve gone through numerous ups and downs that have made you who you are today. So many things happened, things that have changed your perspective, taught you lessons, and forced your spirit to grow. Remember, strength doesn’t come from comfort, it comes from overcoming all the things you once thought you couldn’t handle! Peace & More Peace ~ Om Namah Shivaya ~ Boom Shankar! 🙏🏻

॥ गायत्रीमन्त्राः ॥




॥ गायत्रीमन्त्राः ॥ 
1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥
3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 
4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 
5 ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि तन्न आदित्यः प्रचोदयात् ॥ 
6 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 
7 ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 
8 ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥ 
9 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥ 
10 ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥ 
11ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥ 
12 अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥ 
13 ॐ अङ्गारकाय विद्महे भूमिपालाय धीमहि तन्नः कुजः प्रचोदयात् ॥
14 ॐ चित्रिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
15 ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
16बुध ॐ गजध्वजाय विद्महे सुखहस्ताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
17ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
18 ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥ 
19 गुरु ॐ वृषभध्वजाय विद्महे क्रुनिहस्ताय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
20 ॐ सुराचार्याय विद्महे सुरश्रेष्ठाय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
21 शुक्र ॐ अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
22 ॐ रजदाभाय विद्महे भृगुसुताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥ 
23ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
24शनीश्वर, शनैश्चर, शनी ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥ 
25ॐ शनैश्चराय विद्महे सूर्यपुत्राय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥
26 ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः सौरिः प्रचोदयात् ॥
27 राहु ॐ नाकध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
28 ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
29 केतु ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
30 ॐ चित्रवर्णाय विद्महे सर्परूपाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
31 ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
32 पृथ्वी ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्रमर्त्यै च धीमहि तन्नः पृथ्वी प्रचोदयात् ॥
33 ब्रह्मा ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
34 ॐ वेदात्मनाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
35 ॐ चतुर्मुखाय विद्महे कमण्डलुधराय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
36 ॐ परमेश्वराय विद्महे परमतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
37 विष्णु ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
38 नारायण ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
39 वेङ्कटेश्वर ॐ निरञ्जनाय विद्महे निरपाशाय (?) धीमहि तन्नः श्रीनिवासः प्रचोदयात् ॥
40 राम ॐ रघुवंश्याय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
41 ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
42 ॐ भरताग्रजाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
43 ॐ भरताग्रजाय विद्महे रघुनन्दनाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
44 कृष्ण ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
45 ॐ दामोदराय विद्महे रुक्मिणीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
46 ॐ गोविन्दाय विद्महे गोपीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ।
47 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥
48 पाण्डुरङ्ग ॐ भक्तवरदाय विद्महे पाण्डुरङ्गाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
49 नृसिंह ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि तन्नो नारसिꣳहः प्रचोदयात् ॥
50 ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नः सिंहः प्रचोदयात् ॥
51 परशुराम ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नः परशुरामः प्रचोदयात् ॥
52 इन्द्र ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥
53 हनुमान ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् ॥
54 ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् ॥
55 मारुती ॐ मरुत्पुत्राय विद्महे आञ्जनेयाय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात् ॥
56 दुर्गा ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
57 ॐ महाशूलिन्यै विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
58 ॐ गिरिजायै च विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
59 शक्ति ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात् ॥
60 काली ॐ कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै च धीमहि तन्न अघोरा प्रचोदयात् ॥
61 ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि तन्नः कालीः प्रचोदयात् ॥
62 देवी ॐ महाशूलिन्यै च विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
63 ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराज्ञै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
64 गौरी ॐ सुभगायै च विद्महे काममालिन्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
65 लक्ष्मी ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीश्च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
66 ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
67 सरस्वती ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात् ॥
68 सीता ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै च धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥
69 राधा ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् ॥
70 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्न अन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
71 तुलसी ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि तन्नो बृन्दः प्रचोदयात् ॥
72 महादेव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
73 रुद्र ॐ पुरुषस्य विद्महे सहस्राक्षस्य धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
74 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
75 शङ्कर ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि तन्नः साम्बः प्रचोदयात् ॥
76 नन्दिकेश्वर ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नन्दिकेश्वराय धीमहि तन्नो वृषभः प्रचोदयात् ॥
77 गणेश ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
78 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
79 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
80 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
81 ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
82 षण्मुख ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः स्कन्दः प्रचोदयात्॥
83 ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षष्ठः प्रचोदयात् ॥
84 सुब्रह्मण्य ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षण्मुखः प्रचोदयात् ॥
85 ॐ ॐ ॐकाराय विद्महे डमरुजातस्य धीमहि! तन्नः प्रणवः प्रचोदयात् ॥
86 अजपा ॐ हंस हंसाय विद्महे सोऽहं हंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
87 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥
88 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्मणे धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
89 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
90 अग्नि ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥
91 ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥
92 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ॥
93 यम ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात् ॥
94 वरुण ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात् ॥
95 वैश्वानर ॐ पावकाय विद्महे सप्तजिह्वाय धीमहि तन्नो वैश्वानरः प्रचोदयात् ॥
96 मन्मथ ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पवनाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात् ॥
97 हंस ॐ हंस हंसाय विद्महे परमहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
98 ॐ परमहंसाय विद्महे महत्तत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
99 नन्दी ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नन्दिः प्रचोदयात् ॥
100 गरुड ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
101 सर्प ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नः सर्पः प्रचोदयात् ॥
102 पाञ्चजन्य ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शङ्खः प्रचोदयात् ॥
103 सुदर्शन ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्नश्चक्रः प्रचोदयात् ॥
104 अग्नि ॐ रुद्रनेत्राय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो वह्निः प्रचोदयात् ॥
105 ॐ वैश्वानराय विद्महे लाललीलाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥
106 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमथनाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥
107 आकाश ॐ आकाशाय च विद्महे नभोदेवाय धीमहि तन्नो गगनं प्रचोदयात् ॥
108 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्नोऽन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
109 बगलामुखी ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
110 बटुकभैरव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे आपदुद्धारणाय धीमहि तन्नो बटुकः प्रचोदयात् ॥
111 भैरवी ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
112 भुवनेश्वरी ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
113 ब्रह्मा ॐ पद्मोद्भवाय विद्महे देववक्त्राय धीमहि तन्नः स्रष्टा प्रचोदयात् ॥
114 ॐ वेदात्मने च विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
115 ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
116 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
117 छिन्नमस्ता ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
118 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥
119 देवी ॐ देव्यैब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
120 धूमावती ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात् ॥
121 दुर्गा ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
122 ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
123 गणेश ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
124 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
125 गरुड ॐ वैनतेयाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
126 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपर्णाय (सुवर्णपक्षाय) धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
127 गौरी ॐ गणाम्बिकायै विद्महे कर्मसिद्ध्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
128 ॐ सुभगायै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
129 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥
130 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
131 हनुमत् ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
132 ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
133 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
134 इन्द्र, शक्र ॐ देवराजाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नः शक्रः प्रचोदयात् ॥
135 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥
136 जल ॐ ह्रीं जलबिम्बाय विद्महे मीनपुरुषाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
137 ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नस्त्वम्बु प्रचोदयात् ॥
138 जानकी ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥