Sunday, 6 March 2016

यूनान में पुरानी कथा है कि एक ज्योतिषी रात आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ चल रहा था

यूनान में पुरानी कथा है कि एक ज्योतिषी रात आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ चल रहा था, एक कुएं में गिर पड़ा। चिल्लाया, घबड़ाया। पास कोई किसान बूढ़ी औरत ने दौड़ कर रात में इंतजाम किया, लालटेन लाई, रस्सी लाई, उसे निकाला। वह बड़ा प्रसिद्ध ज्योतिषी था। उसकी फीस भी बहुत बड़ी थी। सम्राटों का ज्योतिषी था। साधारण आदमी तो उसके पास पहुंच नहीं सकते थे। उसने कहा: बूढ़ी मां, तुझे पता है मैं कौन हूं? तेरा सौभाग्य है कि तूने यूनान के सबसे बड़े ज्योतिषी को सहायता देकर कुएं से बाहर निकाला है। मेरी फीस इतनी है कि सिर्फ सम्राट चुका सकते हैं। मगर तेरा हाथ और तेरा भविष्य मैं बिना फीस के देख दूंगा। तू सुबह आ जाना।
वह बूढ़ी हंसने लगी। उसने कहा: बेटा, तुझे अपने सामने का कुआं नहीं दिखाई पड़ता, तू मेरा भविष्य कैसे देखेगा? तुझे अपना ही...भविष्य तो छोड़, वर्तमान भी दिखाई नहीं पड़ता। तू पहले रास्ते पर चलना सीख। तू चांदत्तारों पर चलता है!
जिसकी आंखें चांदत्तारों पर लगी हैं, अक्सर हो जाता है कुएं में गिरना। तुम सब भी ऐसे कुएं में ही गिरे हो। आंखें चांदत्तारों पर लगी हैं, यहां देखो तो कैसे देखो! पास देखे तो कौन देखे! तुम्हारे सारे प्राण तो वहां अटके हैं।

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