महाविद्या की विश्व में हो रहा है हमारा प्रवेश , सच्चिदानंदघनगुरुतत्त्वकी अनुकंपाहि ईसका कारण ।
जानते हुए हर एक तत्व से करते हुए परीचय प्रसादित होंगे पल पल ईस असीम की राह पर।
ऊल्हासित होंगे दिव्यप्रज्ञा में प्राण हमारे पुलकित होंगे कदम कदम पर , खुलते खुलते खुलेंगे महाविद्या परीचय के साथ एक एक जीवन रहस्य ।
अंतर्याम कि खुलेगी हर पंखुड़ी हमारे भीतर चेतना में , महाविद्याके पहेचानके साथ जल ऊठेगी अंतरज्योती ।
महाविद्या है हमारे साँस साँस का गीत ए आल्हाद शिवोहं , सोहं हंसा नाद जिनका ऊसीके गोद में हो रहा है विलास हमारा ।
दश महाविद्या में हि चल रहा है कार्य सृजनशीलता का अखंड अखंडताकी धारा, सृष्टामय अविष्कार जो है सृष्टी का भरण पोषणके साथ तालबद्ध लयताका ।
जानते हुए हर एक तत्व से करते हुए परीचय प्रसादित होंगे पल पल ईस असीम की राह पर।
ऊल्हासित होंगे दिव्यप्रज्ञा में प्राण हमारे पुलकित होंगे कदम कदम पर , खुलते खुलते खुलेंगे महाविद्या परीचय के साथ एक एक जीवन रहस्य ।
अंतर्याम कि खुलेगी हर पंखुड़ी हमारे भीतर चेतना में , महाविद्याके पहेचानके साथ जल ऊठेगी अंतरज्योती ।
महाविद्या है हमारे साँस साँस का गीत ए आल्हाद शिवोहं , सोहं हंसा नाद जिनका ऊसीके गोद में हो रहा है विलास हमारा ।
दश महाविद्या में हि चल रहा है कार्य सृजनशीलता का अखंड अखंडताकी धारा, सृष्टामय अविष्कार जो है सृष्टी का भरण पोषणके साथ तालबद्ध लयताका ।
दश महाविद्या क्या है !?!
क्रीं :- क्या नही है दशमहाविद्या ।?।
क्रीं :- क्या नही है दशमहाविद्या ।?।
सृष्टी के हर रचना की हुई रचना जीनसे , ऊनमें ही प्रत्येक विद्या का जन्म और लय।
परम गोपनीय महाशक्तियाँ सृष्टी की सबसे समर्थ और नित्य सदा , वो दसमहाविद्या है आदिनाथ सदाशिवजी की अनआकलनिय अद्भुत लिला
परम गोपनीय महाशक्तियाँ सृष्टी की सबसे समर्थ और नित्य सदा , वो दसमहाविद्या है आदिनाथ सदाशिवजी की अनआकलनिय अद्भुत लिला
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शिवदेवेंद्र कृपा में जानेंगे , शंकर कृपा में समझेंगे।
जीना अपने आप होगा , जगतीजो जानसेअंतर्याम में।
जीना अपने आप होगा , जगतीजो जानसेअंतर्याम में।
अलख निरंजन जय शंकर ...जय जय शिवदेवेंद्र शंकर स्वामी ॐ शंभो जय अलख शंभो 🌸🙏🌸
महाविद्याये ईस ब्रम्हांड की सर्वोच्च शक्तीया है।हालाँकि ए ब्रम्हांड अनेकों अधिष्ठात्री शक्तियों से चलता है । बहुत सी शक्तीया ज्ञात है तो बहुतसारी अज्ञात । ईन्ही ज्ञात और अज्ञात शक्तियों के बिच मनुष्य का जीवन ऊलझा हुआ सा है । बड़े से बडा महापुरुष भी ईस संपुर्ण ब्रम्हांड के रहस्य को नही जान पाता । नहि दे पाता बड़े से बडा ज्ञानी योगी भी ब्रमह्मांड के उत्पत्ति के बारे में सही और सटिक विवरण । बड़े से बडा बुद्धिमान और बड़े से बडा वैज्ञानिक भी ईस सृष्टी के अंत की सटिक छबी प्रस्तुत नही कर पाता । ईसी की खोज में जन्म हुआ अनोकों साधना विधियाँ और अनोको सौंदर्यपुर्ण रहस्योंका ख़ुलासा होता आया है और होता रहेगा । अनंत संभावनोका खुलता आया है असंभावित संभावि द्वार जीससे कितने सारे हमारे पुर्वज असीमता को ऊपलब्ध हुए और हो रहे है जहासे संस्कृती का ऊगम हुआ है हमारे जीवन के उत्थान के लिए जिसमें प्रवाहित हो जीवन की सहजता का अनुभव करते हुए आनंदपुर्ण जीवन जीना संभव हो पाया है और होता रहेगा । अलख शंभो - धन्यवाद गुरुवरो संस्कृती के सृजनकारो ! धन्यवाद ..! धन्यवाद....जीवन ज्योतीपथ के रखवालों ! धन्यवाद शुद्ध बुद्ध साक्षी विरहों .....धन्यवाद पुर्वजनों धन्यावाद ..ज्ञानदानी पथदर्शी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष पावन आत्माओं नमण आपको नमण .. ...!ऊंडेल दो महासागर वो आपकी साक्षी का , बहादो निर वो आपकी मुहोब्बत का।
भले हि हम लघु पराधी में जीने वाले है , एक छोटी सी पराधी में हम भले हि जीते है - पर संस्कृती की धारा हमें जीवन के सौंदर्य से परीचित कराती है चेतना के परमऊच्चता में लेकर जाती है धिरे धिरे सहजता के साथ सजगताको बढाते हुए । - ये आप सभी की देन है संतों , महापुरुष हो , योगीजन हो , पावण भक्तगण हो नमण आपको नमण 🌸🙏🌸
बस ईस धारा को खंडित न किया जाये - आपके ईस ईशारे को समझ हम बजाये ईसके जागृती के साथ संस्कृती का जनम चेतना की जिस स्थित से हुआ है , ऊस अंतस्थ समंदर के क़रीब ज्यादा से ज्यादा सदगुरु कार्य के लिए जनम लिए साधको सिद्धो का होना बहुत जरुरी है शायद तो सब ऊस गहेनमिलधाम की क़रीबी बढ़ाकर आपके सह्योगी हो रहे है धरती के दिव्यसितारे अब ।
सभी सोहंहंसी दासोहं के साथ सच्चिदनंदसंगीयोंको खुदकी एकांकी ध्यानमग्नता से बाहर आकर प्राप्त हुए खुदी के ज्ञान को सभी के लिए ऊपलब्ध कराना चाहिए एक चेतना को ऊंचा ऊठाने के गुरुकार्य में सम्मिलित होना चाहिए । - सिद्धअग्नी समक्ष दि गयी आपकी ललकार गुंज रही है प्रेरीत कर रही है दिल दिल की धडकनोंको ।
बिन बाँटे अब कोन रहेगा और कौन शर्मायेगा मांगनेमे, पता चला हो जब सब है हमारेही चेतना केहि हिस्से ।
होना जरुरी ये और ईसी दिशा में अग्रेसर हो रहे है क़ाफ़िले सारे, गुरुजगत प्रसन्न बहुत ऊनकी आहत सुने है झंकारमें ऊसकी गंधित हो रहे है सब ।
हमारे भाई बहण जो हमारे चेतना के हि हिस्से है वो जहा पैदा होते है बचपन वही आसपास व्यतीत कर देते है । कुछ बड़े होते है तो दुर दुर तक जाते है । हम मे से बहुत तो ईस पुरी पृथ्वी की परीक्रमा भी कर लेते है , लेकिन क्या ईतना सब कर लेने के बाद भी वो ईस पृथ्वी को जान पाये क्या ऊनके हृदय विकसित हो पाते है ।?। हमारी पृथ्वी ही ईतनी विशाल और अद्भुत है की ईसे देख पाना हमारे लिए संभव ही नही । जहा एक ओर ऊँचे पर्वत है तो दुसरी तरह गहरी खाईया है । एक ओर बर्फ़ ही बर्फ़ है तो दुसरे ओर सागर , तिसरी ओर घने वन , चौथी ओर विशाल रेगिस्तान । हर एक प्रकृतिक परिवेश अपना एक अलगसे नये रुपरंग को लिए हुए हमारे संमुख प्रस्तुत रहता है । नया से नया पर्वत , नये सा नया जलवायु और नया से नया परिवर्तन हमे हमेशा आकृष्ट करते रहता है । हम पृथ्वी को ही नही समझ सकते तो विराट आकाश कि ओर निहारकर ऊसे समझना बहुत जटील है लेकिन ये सारा का सारा प्रपंच हमारे लिए ही है और हमे ईसकी खोज भी करनी होगी , ईसके लिए हमे झटपटाना होगा । अपने मन मे ललक पैदा करनी होगी । सृष्टा के ईस सौंदर्य का पान करने की पात्रता जगानी होगी जीवात्मा की जीवन में गुरुप्रणित दिव्य गणोंको ।
परमात्मा ने हमे ज्ञान की ललक तो दे रखी है के हम जीसकिसी वस्तु को देखे ऊसके बारे में जानने के लिए ऊत्सुक हो और हम ऊसतक पहुँचने का प्रयास करे जींस गहरे सुत्र से जुडे है ऊस सुत्र को जाने का प्रयास हो प्रेमपुर्ण अहोभाव के साथ । मानव सभ्यता में कुछ बुद्धिमान मनुष्यों ने आकाश के नक्षत्रों की खोज की और आकाश में जाकर अपनी पृथ्वी को देखा । अपने बनाये ऊपकरनों को उपग्रहों के रुप में सदुर अंतरीक्ष में भेजा । कुछ बुद्धिमान लोगो ने वायुयान से लेकर कुछ ब्रम्हांड भेदी यानों की खोज की ऊनका अविष्कार किया निरंतर ब्रम्हांड में होनेवाली खोजो और निरंतर विज्ञान के द्वारा होनेवाले आविष्कारों को देखकर - एकओर मनुष्य का बुद्धी विलास देखने को मिलता है , वही दुसरी ओर अधिकांश मनुष्य केवल छोटेसे सिमीत जीवन को जीते है । ठिक वही आध्यात्म की अपनी एक अलौकीक ख़ुबी है लेकिन ऊस आध्यात्मिकता को जीवंतता प्रदान होना जरुरी है अगर हुई तो वही आध्यात्म हमे ऊस ऊर्जा तक पहुँचा सकता है जीससे ए सारा विलास संभव हुआ है , जो ईनदोनों से बिलकुल हटकर बात करता है जो दोनों के पार है जो दोनों के अदृश्य चेतन ऊगम स्त्रोत की ओर ईंकीत कराता है और ऊसी को ऊपलब्ध कराता है अलख निरंजन की बादशाहत से परीचित कराता है🌸🙏🌸
आध्यात्म ऊस शक्ती की तलाश है जो ईस सृष्टी को बनानेवाली है और जीवंतता ईसकी ऊस शक्ती की तलाश कराता है हमसे जो सारी सृष्टी को चलाती है ।
विज्ञान भी यही कर रहा है । विज्ञान के समझनेके तरीके और तथ्य अपने है और आध्यात्म के तरीके और तथ्य अपने है पर विज्ञान आध्यात्मकाहि हिस्सा है जो आध्यात्मिकताकोहि प्रत्यक्ष रुप में सिद्ध कर रहा है मानव बुद्धी के तल पर , वही शक्ती ऊनसे ए करा रही है सिद्धियोंको यंत्र रुप दे रही है प्रयोगात्मक जीवन का अंगीकार कर रही है ।
लेकिन बिच बिच में यहा धर्म और विज्ञान के मध्य एक जगह पर युद्ध जैसी स्थिती उत्पन्न हो जाती है । जब कोई भगवान का पुत्र धर्मगुरु या कोई बडी हस्ती ए कहती है की ऊसके परमेश्वर ने सृष्टी को बनाया है तो विज्ञान कहता है लाकर दिखाओ की वो कहा रहता है किव की जबतक हम ऊसे न देख ले तब तक चुप नही बैठेंगे । पर एक जोड पे सब एक दुसरे के तादात्म्य भाव में है जिस तादात्म्य को हम महाविद्या साधना में अनुभुत करेंगे ।
लेकिन बिच बिच में यहा धर्म और विज्ञान के मध्य एक जगह पर युद्ध जैसी स्थिती उत्पन्न हो जाती है । जब कोई भगवान का पुत्र धर्मगुरु या कोई बडी हस्ती ए कहती है की ऊसके परमेश्वर ने सृष्टी को बनाया है तो विज्ञान कहता है लाकर दिखाओ की वो कहा रहता है किव की जबतक हम ऊसे न देख ले तब तक चुप नही बैठेंगे । पर एक जोड पे सब एक दुसरे के तादात्म्य भाव में है जिस तादात्म्य को हम महाविद्या साधना में अनुभुत करेंगे ।
आजतक अवतारोंके रुप में जिनको हमने माना स्विकारा वो स्वयं मानव थे , हालाँकि ऊन्होने कुछ ऐसे कार्य किये जो एक आम मनुष्य के लिए संभव नही है , कोई मरकर फिर जी ऊठा । किसी ने अंधों को आँखे दि , किसीने दुखीयोंके दु:ख हर लिए । किसीने जीसे बच्चे नही होते ऊनको भी ऐसा कुछ आशिर्वाद दिया कि शादि के सालों बाद भी जहा डाॅक्टोंने हाथ टेक दिये थे वही सुनी गोदि भी भर दि है , मातृसुख पितृसुख से लाभान्वित हुए है प्रत्यक्ष रुपेन । किसी ने लोगों के लिए एक मर्यादा का रास्ता स्थापित किया , तो किसी ने पापीयोंका संहार किया । किसीने संजीवन रहस्य को प्रस्तुत किया जीवीत समाधि लेकर और मुक्ती का द्वार खोला जीवात्माओंके लिए , तो किसीने हमे सुखी जीवन जीने का मार्ग बताया - लेकिन क्या केवल ईतना होना ही परमात्मा होना है ।?।
अलख निरंजन जय शंकर ...
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