कितना आसान है--बुद्ध-पुरुषों जैसे वस्त्र पहन लेना। कितना आसान है--उनके जैसे उठना, बैठना, चलना, और कितना कठिन है, उनके जैसा हो जाना! वह जो भीतर है, वह जो जीवंत ज्योति भीतर है, उसके जैसा हो जाना अति कठिन है। इसलिए हम सुगम मार्ग खोजते हैं। मन सदा ही लीस्ट रेसिस्टेन्स--जहां कम से कम असुविधा हो, उसको चुनता है। असुविधा इसमें कुछ भी नहीं है कि तुम बुद्ध-जैसा वस्त्र पहन लो, कि तुम बुद्ध जैसे उठो-बैठो; बुद्ध जो भोजन करें, तुम भी करो; बुद्ध जब सोएं, तब तुम भी सो जाओ। तुम बाहर सेबिलकुल अभिनय करो। अभिनेता हो जाना सबसे सरल है। लेकिन अभिनेता प्रामाणिक नहीं है। अभिनेता एक झूठ है। और तुम भली-भांति जानते रहोगे कि अभिनय बाहर-बाहर है। भीतर तुम्हें अपना अंधकार, अपनी नग्नता, अपनी सड़ी-गली स्थिति दिखाई पड़ती रहेगी। तुम उसे कैसे छिपाओगे? वस्त्र कितने ही सुंदर हों, और आभूषण कितने ही मूल्यवान, लेकिन तुम्हारे भीतर के नासूर उनसे मिटेंगे नहीं, छिपेंगे भी नहीं। तो बुद्ध-पुरुषों से यह सीखना कि तुम अपने मार्ग पर कैसे चलो। बुद्ध-पुरुषों से अनुकरण मत सीखना। उनसे तुम यह सीखना कि तुम्हारा बुद्धत्व कैसे जगे। आंख बंद करके अंधे की भांति उनके पीछे मत चलना। क्योंकि उनका मार्ग, तुम्हारा मार्ग कभी भी होनेवाला नहीं है। इसलिए जो अनुकरण करेगा, वह भटक जाएगा। यह पहली बात समझ लें।
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