Tuesday 16 February 2016

।।खानी,चार बानी।।

।।चार खानी,चार बानी।।
चार खानी से आशय है सृष्टि में 4 प्रकार से उत्पत्ति
1.अंडज-वे जिव जिनका जन्म अंडे से होता है,जैसे -सर्प,पक्षी,मगरमच्छ इत्यादि
2.पिण्डज(जरायुज):-जैसे:-मनुष्य,गाय,बकरी इत्यादि
3.स्वेदज:-पसीने से पैदा होने वाले जिव जैसे बालो में जूं
4.बीजक(उद्विज):-जिनका जन्म बिज से होता है या भूमि एवम् जल के संगम से होता है।जैसे :-वृक्ष,फल-फुल इत्यादि
“चार बाणी”
चार बाणी से आशय 4 प्रकार की ध्वनियाँ,जिनका इस्तेमाल हम बात करने में करते है किन्तु सब को इसका ज्ञान नहीं होता।ये हमारे शरीर में निवास करती है।
1.परावाणी:-इसका स्थान शरीर में मूलाधार चक्र(जो की शरीर में लिंग स्थान से दो इंच)निचे होता है।क्रोध,उत्तेजना इत्यादि के समय ये वाणी प्रगट होती है जो भारी एवं कामुक दोनों होती है।
2.पश्यन्तिवाणी:-इसका स्थान अनाहत चक्र(हृदय के पास)होता है।प्रेम के समय ,माता पिता या गुरुजन के समक्ष ये वाणी पैदा होती है।एवम् जिव जन्तुओ को प्रेम करते समय भी ये वाणी पैदा होती है।
3.मध्यमावानी:-इसका स्थान विशुद्ध चक्र(कंठ के भीतर) होता है।अकसर गायको का ये चक्र एवम् वाणी सक्रिय होती है।
4.बैखरीवाणी:-इसका स्थान मुख में होता है सामान्यतः हम इसी वाणी का इस्तेमाल करते है।
किन्तु मैंने पाया की जब आप ऊंचा राग लगाते है तो क्रमश आप बैखरी से मूलाधार की बढ़ते जाते है।इसके अलावा मेरे अनुभवानुसार पश्यन्ति वाणी एवं परावाणी के मध्य नाभिचक्र के पास भी एक वाणी होती है किन्तु इस वाणी का विश्लेषण मैंने अभी तक किसी धार्मिक ग्रन्थ में या दर्शन में मैंने नहीं पाया।
श्वास और प्राण ये दोनो में भिन्नता है।श्वास प्राण नहीं है।श्वास वायु है-तत्व है।और प्राण ऊर्जा है शक्ति है।प्राण ही श्वास लेता है और इन वाणियों का जन्म होता है।
इस लेख में खानी-बाणी का नाम तो वैदिक-साबर विधि से ही लिया गया है किन्तु इसका विश्लेषण मैंने किया है ऐसी अवस्था में हो सकता है मेरे लघु ज्ञान के कारण कोई त्रुटि रह गई हो तो कृपया मुझे क्षमा करते हुए ,लेख की उन त्रुटियों को कॉमेंट बॉक्स में लिख कर मेरा सहयोग करे।
।।आपका राहुलनाथ ।।
(व्यक्तिगत विचार एवं अनुभूति)
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य मेरी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए मेरी मौलिक संपत्ति है। किन्ही स्थानों में शास्त्रीय एवं ज्ञान वर्धक साहित्य का उपयोग आवश्यकतानुसार किया गया है।मेरे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस व्यक्ति पे वैधानिक कार्यवाही की जायेगी।
चेतावनी-मेरे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रयोग को करता है और उसे लाभ नहीं होता या फिर किसी कारण वश हानि होती है,तो उसकी जिम्मेदारी मेंरी कतई नहीं होगी,क्योकि मेरा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है। साधको को किसी भी प्रकार की (शारीरिक व मानसिक)हानि के लिए मै उत्तर दाई नहीं रहूंगा ।अत: सोच समझ कर साधनाए प्रारम्भ करे।वाद-विवाद की स्थिति में दुर्ग ,छत्तीसगढ़ में स्थित न्यायलय मान्य होगा।।
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