Wednesday, 31 August 2016

Dus Mahavidhya Tantrik Sadhak

Dus Mahavidhya Tantrik Sadhak
धन कुबेर साधना 1



धन और सुख की कामना किसे नहीं होती | अगर भाग्य साथ नहीं दे रहा तो मांत्रिक शक्ति का आसरा लेना गलत नहीं है | मेहनत तो करनी ही पड़ेगी चाहे साधना हो या आपके अपने कार्य  क्षेत्र  इस के लिए अपने को मन से तयार करे और प्रसन चित से साधना करे | सच्चे मन से किया कार्य कभी विफल नहीं होता फिर साधना का आधार तो आस्था है | धन की समस्या आ रही है तो इसके लिए कुबेर साधना बहुत लाभकारी है | आज के युग में धन के बिना सभी कार्य अधूरे रहते है | जहां मैं एक कुबेर देवता की साधना दे रहा हु जो की षोडश वर्णीय मंत्र साधना कहलती है | इस के प्रवाभ से धन धन्य की कमी का साहमना कभी नहीं करना पड़ता बस अपने मन को पवित्र करे और साधना करे भगवान आपको जरूर सफलता देंगे |
विधि –
1.  यह साधना किसी भी शुभ महूरत धन तेरस ,दीपावली ,नवरात्रि और किसी भी शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को शुरू करे |
2.  इस मंत्र का जाप शिव मंदिर में करे जा बिल्ब के पेड़ के नीचे बैठ के भी किया जा सकता है |
3.  मंत्र  जाप सवा लाख करना है | इसके के लिए आप २१ दिन जा अपनी सुविदा अनुसार दिन ले सकते है | जप साक्ष्य रोज उतनी ही रहेगी जितनी पहले दिन की हो |
4.  आसन कुशा का उतम है | न मिले तो कोई भी लाल रंग का आसन ले ले |
5.  दिशा उतर ठीक है |
6.  साधना काल में घी का दीपक जलता रहना चाहिए |
7.  भगवान शंकर का पूजन कर आज्ञा ले और गुरु पूजन व गणेश पूजन कर साधना शुरू करे |
8.  भोग के लिए कोई भी शुद्ध घी की मिठाई ले सकते है | फिर भी दूध से बनी मिठाई उत्म रहती है |
9.  अपने साम्हने कुबेर यंत्र की स्थापना करे अगर आपके पास पारद शिवलिंग घर में है तो उसके पास बैठ कर भी कर सकते है | यंत्र का पूजन पंचौपचार विधि से करे |और प्रार्थना करे के आपके जीवन में धन की कभी कमी न आए और आपके सभी कार्य निरविघ्न संपन होते रहे | फिर आप अपने गुरु मंत्र का २ माला जप कर ले और कुबेर मंत्र का जप अपने दिनो के अनुसार कर ले आप को कुल १२५० मलाए जपना है |
10. साधना पूर्ण होने पे यंत्र को पुजा स्थान में स्थाप्त कर दे और शेष पूजन सामाग्री अगर घर में कर रहे है तो जल प्रवाह करदे अगर मंदिर में कर रहे है तो वोही छोड़ दे |
11. शिव कृपा से आप की साधना सफल हो तो छोटे बच्चो को भोजन जा मिठाई आदि बाँट दे |
 कई वार यह  साधना करते समय बहुत बड़ा काला नाग सामने आ जाता है | जिस से डरे न क्यू के यह कुबेर देव ही होते है |यह सिर्फ मेरा अनुभव है हर साधक को ऐसा हो यह जरूरी नहीं |

 मंत्र  -

|| ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं कलीं श्रीं कलीं ॐ वितेश्वराय नमः ||

धन कुबेर साधना 2



यह कुबेर का रूप सर्व मंगल स्वरूपी है | धन आदि जीवन में प्राप्त होता रहे और सभी कार्य नियमत रूप से चलते रहे भाग्य साथ दे और हम  जो भी कार्य करे उसका हुमे पूरा फल मिले इस लिए इन की साधना की जाती है |
लाल वस्त्र पे कुबेर यंत्र का स्थापन करे | लाल पुष्प लेकर मंत्र पढ़ते हुये धन कुबेर की स्थापना यंत्र पे करे |
|| ॐ हसौं धन कुबेराये एहः आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ||
1.  दिन मंगल वार श्रेष्ठ है |
2.  वस्त्र और आसन लाल ठीक है |
3.  दिशा पूर्व की और मुख रखे |
4.  माला रुद्राक्ष  की ले और 7 ,11 जा 21 माला जप करे |
5.  यंत्र का पचौपचार पूजन करे धूप दीप आदि से |
6.  भोग खीर का लगाये यंत्र के पास ही एक पात्र में खीर का भोग रखे भोग खीर मेवे आदि का भोग लगाये |
7.  साधना टाइम शाम 7 से रात्री 10 व्जे के बीच कभी भी करे |
8.  जप पूर्ण होने पे लाल पुष्प कुंकुम मिश्र्त अक्षत आदि चढ़ाये और आरती करे कुश दिन तक मानसिक जप करते रहे भोग स्व ग्रहण करे और परिवार में बाँट दे साधना पूर्ण होने पे यंत्र और माल को पुजा स्थान में स्थाप्त कर दे बाकी शेष समगरी को उसी वस्त्र में बांध कर जल प्रवाह कर दे |


मंत्र --       || ॐ हसौं धन कुबेराये हुं ||

अमृत कुबेर साधना

अमृत कुबेर की साधना स्वास्थ लाभ रोग अति आदि की समाप्ती के लिए की जाती है | क्यू के स्वास्थ ही सभ से बड़ी पूंजी होती है | मानसिक रोग को समाप्त करने और स्मस्थ रोगो का नाश करते है |

नीले रंग का वस्त्र बेजोट पे विशाए और उस पे कुबेर यंत्र स्थापत करे |
|| ॐ हसौं अमृत कुबेराये एहः आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ||
1.  नीले रंग का वस्त्र विशा कर नीले रंग के आसन पे बैठ कर जप करे |
2.  दिन शुक्रवार ठीक है |
3.  दिशा पच्छिम  की और मुख रखे |
4.  यंत्र के पास ही एक पात्र में दही भी स्थापत करे |
5.  माला मोती की लेनी है |
6.  7 ,11 जा 21 माला जप करना है |
7.  मिठाई लड्डू बर्फी आदि का भोग लगाये | भोग स्व ग्रहण करे और परिवार आदि में बाँट दे | दही छत पे पंक्षियों को रख दे |
8.  जप पूरा होने पर कमल का पुष्प अथवा लाल फूल अक्षत आदि अर्पित करे | साधना समाप्ती पे यंत्र और माला को छोड़ कर शेष स्मगरी उसी वस्त्र में बांध कर जल प्रवाह करदे दही पक्षियो को डाल दे | साधना के बाद कुश दिन तक मानसिक जप करते रहे|

मंत्र --|| ॐ हसौं अमृत कुबेराये हुं ||

प्राण कुबेर साधना



प्राण कुबेर की साधना ऋण से मुक्ति के लिए की जाती है | धन तो आता है पर कर्ज से मुक्ति न मिल रही हो तो यह साधना बहुत लाभकारी है |
पीले वस्त्र पे कुबेर यंत्र स्थाप्त करे और कुबेर की स्थापना करे एक पीला पुष्प लेकर मंत्र पढ़ते हुये चढ़ाये |
|| ॐ हसौं प्राण कुबेराये एहः आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ||
1.  सोम वार  के दिन यह साधना करनी है |
2.  वस्त्र एवं आसन पीला रहेगा |
3.  यंत्र का पचौपचार पूजन करे | यंत्र के साथ ही शहत स्थापित करे और अर्पित करे |
4.  दिशा उतर ठीक है |
5.  पीले तथा लाल मिश्र्त पुष्प अर्पित करे |
6.  चन्दन की माला से 7,11,21 माला जप करे |
7.  फलो का प्रसाद चढ़ाए |
8.  जप समाप्ती पे फलो का प्रसाद अर्पित करे और लाल और पीले पुष्प चढ़ाए कुश दिन तक मानसिक जप करते रहे | साधना पूरी होने पे यंत्र और माला छोड़ कर बाकी समगरी जल प्रवाह कर दे |
मंत्र
|| ॐ हसौं प्राण कुबेराये हुं ||



अघोर आकस्मिक धन प्राप्ति प्रयोग





धर्म अर्थ काम और मोक्ष जीवन के चार मुख्य स्तंभ है. इन सभी पक्षों मे व्यक्ति पूर्णता प्राप्त करे यही उद्देश्यसाधना जगत का भी है. इसी लिए व्यक्ति के गृहस्थ और आध्यात्मिक दोनों पक्ष के सबंध मे साधनाओ का अस्तित्वबराबर रहा है. हमारे ऋषि मुनि जहा एक और आध्याम मे पूर्णता प्राप्त थे वही भौतिक पक्ष मे भी वह पूर्ण रूप सेसक्षम थे. साधना के सभी मार्गो मे इन मुख्य स्तंभों के अनुरूप साधनाऐ विद्यमान है ही. इस प्रकार अघोर साधनाओमे भी गृहस्थ समस्याओ सबंधित निराकरण को प्राप्त करने के लिए कई साधना विद्यमान है. इन साधनाओ काप्रभाव अत्यधिक तीक्ष्ण होता है, तथा व्यक्ति को अल्प काल मे ही साधना का परिणाम तीव्र ही मिल जाता है. धन कानिरंतर प्रवाह आज के युग मे ज़रुरी है. साधक के लिए यह एक नितांत सत्य है की सभी पक्षों मे पूर्णता प्राप्त करनीचाहिए. जब तक व्यक्ति भोग को नहीं जानेगा तब तक वह मोक्ष को भी केसे जान पाएगा. इस मुख्य चिंतन के साथहर एक प्रकार की साधना का अपना ही एक अलग स्थान है. व्यक्ति चाहे कितना भी परिश्रम करे लेकिन भाग्य साथना दे तो सफलता मिलना सहज नहीं है. ऐसे समय पर व्यक्ति को साधनाओ का सहारा लेना चाहिए तथा अपने कार्योंकी सिद्धि के लिए देवत्व का सहारा लेना चाहिए. पूर्णता प्राप्त करना हमारा हक़ है और साधनाओ के माध्यम से यहसंभव है. किसी भी कार्य के लिए व्यक्ति को आज के युग मे पग पग पर धन की आवश्यकता होती है. हर व्यक्ति कासपना होता हे की वह श्रीसम्प्पन हो. लक्ष्मी से सबंधित कई प्रयोग अघोर मार्ग मे निहित है लेकिन जब बात तीव्र धनप्राप्ति की हो तो अघोर मार्ग की साधनाए लाजवाब है. अघोरियो के प्रयोग अत्यधिक त्वरित गति से कार्य करते हैतथा इच्छापूर्ति करते है. आकस्मिक रूप से धन की प्राप्ति करने के लिए जो विधान है उसके माध्यम से व्यक्ति कोकिसी न किसी रूप मे धन की प्राप्ति होती है तथा त्वरित गति से होती है. इस महत्वपूर्ण और गुप्त विधान को साधकसम्प्पन करे तब चाहे कितने भी भाग्य रूठे हुए हो या फिर परिश्रम सार्थक नहीं हो रहे हो, व्यक्ति को निश्चित रूप सेधन की प्राप्ति होती ही है.
साधक अष्टमी या अमावस्या की रात्रि को स्मशान मे जाए तथा तेल का दीपक लगाये. अपने सामने लाल वस्त्र बिछाकर ५ सफ़ेद हकीक पत्थर रखे तथा उस पर कुंकुम की बिंदी लगाये. साधक के वस्त्र लाल रहे. तथा दिशा उत्तर या पूर्व.उसके बाद साधक सफ़ेद हकीक माला से निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे.
ॐ शीघ्र सर्व लक्ष्मी वश्यमे अघोरेश्वराय फट
साधक को यह क्रम ५ दिन तक करना चाहिए. ५ वे दिन उन हकिक पथ्थरो को उसी लाल कपडे मे पोटली बना करअपनी तिजोरी या धन रखने के स्थान मे रख दे.

अग्नि बांधने और खोलने का अढाईआ मन्त्र



ये मन्त्र भी अपने आप में बहुत तीव्रता रखता है इस का लाभ जहा आग लगी हो उसे बांध देने से वोह बुझ जाती है और फैलने से रुक जाती है इसे कभी दुरूपयोग ना करे | इसका उत्कीलन भी साथ ही दे रहा हू मतलव बांधने और खोलने का भी सिद्ध करे इस की भी जरूरत होती है जब अग्नि पूरी तरह शांत हो जाये तो उसे खोल सकते है |

साधना विधि --
इसको पानी के किनारे बैठ कर करना है | किसी भी नदी अदि पे जाकर कर सकते हैं | जब जप पूरा हो जाये तो उठते वक़्त २ लडू नदी में ड़ाल देने है | दोनों मंत्रो में विधि एक जैसी ही है |
जप २१ माला करना है माला कोई भी ले सकते है फिर भी हकीक की जा मुंगे की ठीक रहती है | २१ दिन की साधना है |
वस्त्र कोई भी पहन सकते हो |


साबर मन्त्र अग्नि बांधने का --
ॐ नमो गुरु को आदेश
जलती बांधू बलती बांधू ,बांधू अगन स्वाई |
हनुमान का अर्का बांधू राम चन्द्र की दुहाई ||

अग्नि खोलने का मन्त्र ---
ॐ नमो गुरुको आदेश
जलती खोलू बलती खोलू ,खोलू अगन स्वाई  |
हनुमान का अर्का खोलू राम चन्द्र की दुहाई ||
बस आज के लिए इतना ही जय गुरुदेव |
प्रयोग विधि --
जहां आग लगी हो कोई भी कंकर उठा कर 21 वार मंत्र पढे और कंकर पे फूक दे | उस कंकर को जल्ती अग्नि में फेक देने से अग्नि बुझ जाती है | इसका दूसरा तरीका यह है के एक लोटा जल ले और उस पे 21 वार मंत्र पढे और अग्नि की तरफ मुख कर वहा दे |इस से भी अग्नि शांत हो जाती है | अग्नि खोलने के लिए कंकर पे 7 वार जा 21 वार मंत्र पढ़ कर दुयारा फेक दे इस से अग्नि खुल जाती है और उसके बाद दलिया बना कर किसी नदी आदि पे दे जा बच्चो को बाँट दे दलिया देते वक़्त किसी पात्र में एक सुलगता हुया उपला रखे और उस पे थोरा घी डाल कर पाँच वार दलिया डाले थोरा थोरा और धूप आदि लगा कर वरुण देव को नमस्कार करे | और अग्नि देव से क्षमा प्रार्थना करे और अशिरबाद ले |



धनदा यक्षिणी साधना



यक्षिणी साधना जहां धन देती है वही आपकी कामना पूर्ति भी करती है | जीवन में आ रही प्रेशनियों को सहज समझ कर उनका निवारण करने का गुण प्रदान करती है | एक सच्चे मित्र की तरह साथ देती हुई साधक का हर प्रकार से मंगल करती है | यक्षिणीये माता की सहचरिए होती है और साधक की साधना में निखार ला देती है | सही मैयने में देखा जाए तो यक्षिणी साधना जीवन में बसंत ऋतु के समान है | जब साधक निरंतर साधना करते हुए ऊर्जा को सहन करते करते मन से कुश तपस के कारण ऊब सा जाता है या  यह कहू के तेज को सहन करने की वजह से कई वार मन की स्थिति ऐसी हो जाती है के उसके लिए जीवन में मन में एक विराग पैदा होने से उदासी सी आ जाती है | ऐसे वक़्त में यक्षिणी उसे नई उमंग देते हुए मन को आनंद से भर देती है | उसके जीवन में वर्षा की फुयार की तरह कार्य करती है | जब साधक आनंद से सराबोर होता है तो साधना करने की ललक उसे जीवन में और शक्ति अर्जित करने को प्रेरत करती है |  यह साधक के जीवन में प्रेम को समझने का गुण पैदा करती है | उसके जीवन को धन धन्य आदि सुख प्रदान करती है | धनदा यक्षिणी की साधना मंत्र शाश्तरों में नाना प्रकार से दी हुई है | जीवन में सवर्ण क्षण होते है जब साधक किसी यक्षिणी का सहचर्या प्राप्त करता है | यक्षिणी साधना दुर्लव है पर दुष्कर नहीं यह सहज ही संपन हो जाती है बस इसे समझने की जरूरत है |जो साधक जीवन में धन आदि सुख चाहते है उन्हे यह साधना संपन करनी चाहिए और यह साधना साधक के मन में साधना के प्रति प्रेरणा पैदा करती है |                      
जहां मैं धनदा यक्षिणी की साधना दे रहा हु आशा करता हु यह साधना आपके जीवन को जरूर नई दिशा देगी इस के लिए साधना के नियमो की पालना करनी अनिवर्य है | यक्षिणी रूप सोंद्र्य से परिपूर्ण होती है यह साधक का काया कल्प तक कर देती है | धनदा यक्षिणी 20 -22 वर्ष की सोंद्र्य की मूर्ति है |इसकी आंखे झील सी गहराई लिए हुई नीली दिखाई देती है | गोर वरणीय मुख के दोनों तरफ दो वालों की वल खाती दो लटाए और लंबी वेणी वालो पे कजरा सा लगाए सुंदर रूप चंद्रमा जैसा जिस सोंद्र्य की आप कल्पना भी नहीं कर सकते उसके वारे अधिक कुश नहीं कह सकता और प्रेम से मन को प्रफुल्त सी करती हुई जब आपके साहमने आती है तो उस वक़्त कैसा मंजर होता है यह आप स्व कर के देख ले | मेरा इस यक्षिणी ने कई वार साथ दिया जब भी जीवन में उदासीन क्षण आए इसने मुझे सँभाला और हमेशा मित्रवत विहार किया जब भी मुझे इसकी सलाह की जरूरत पड़ी एक सच्चे मित्र की तरह मुझे सलाह दी और कई वार ऐसे क्षण आए जब मैंने अपने आपको अकेला सा महसूस किया लेकिन इसने मुझे कभी अकेले पन का एहसास नहीं होने दिया जब भी ऐसा टाइम आया इसको मैंने मेरे कंदे पर अपनी बाजू रखते हुए अपने साथ खड़ी पाया |मैंने कभी इस से धन की लालसा नहीं की लेकिन मेरा कोई कार्य रुका भी नहीं बहुत समय हो गया इस साधना को किए हुये | कुश वर्षो से बेशक मैंने इसे याद नहीं किया फिर भी कभी कभी यह खुद मुझे याद दिला ही देती है | कई वार ऐसे क्षण आए जब यह स्व आके मिली एक दोस्त की तरह | यह बाते हर एक को नहीं बिताई जाती क्यू के यह साधना के निजी अनुभव होते है | जब मैंने यह साधना की थी तो धनदा यक्षिणी स्तोत्र जरूर करता था साथ में | तभी एक दिन एक सोंद्र्य की मूर्ति मेरे साहमने अचानक आ गई और जिसे देखते ही आदमी अपने होश तक खो देता है पर मैंने हमेशा इन शक्तिओ से मित्रवत ही रहा हु और  शुद्ध प्रेम पूर्ण ही रहा हु | बस अंत जही कहुगा का के जीवन में अगर प्रेम की परिभाषा अगर समझनी है तो आप यक्षिणी का सहचर्या प्राप्त करे | सद्गुरु आपको सफलता प्रदान करे |

विधि –

  १. यह साधना 21 दिन की है | 21 दिन में स्वा लाख मंत्र जप जरूरी है |
  २. इसके लिए दो सामग्री  यक्षिणी  यंत्र और यक्षिणी माला आप गुरुधाम  से प्राप्त कर सकते है | अगर सामग्री न हो तो इसे करने के लिए एक लाल वस्त्र पे यक्षिणी की नारी रूप की सुंदर तस्वीर बना कर अथवा मूर्ति आदि बना कर भी की जा सकती है यह साधको को सुविदा के लिए बता रहा हु जा आप सफटिक या  पारद  श्री यंत्र पे भी इसका प्रयोग कर सकते हैं | माला अगर यक्षिणी माला न हो तो लाल चन्दन की माला श्रेष्ठ रहती है |
  ३. वस्त्र पीले अनसिले पहने  मतलव आप पीली धोती और पीतांबर ले सकते है |
  ४. दिशा उतर ठीक है |
  ५. मंत्र जप २१ दिन में स्वा लाख करना है |
  ६. गुरु जी और गणेश जी का पंचौपचार पूजन करे साधना के लिए अनुमति ले फिर यक्षिणी यंत्र जो के अपने साहमने एक बेजोट पे पीला जा लाल वस्त्र विशा के स्थाप्त करना है उसका पूजन करे | पूजन में धूप, दीप , फल, फूल, अक्षत, नवेद आदि के लिए मिठाई जो दूध की बनी हो और इतर आदि चढ़ा कर पुजा करे |
  ७. पूजन के बाद आप गुरु मंत्र जाप ५ माला कर ले तो बेहतर है नहीं तो २ माला  पहले और २ माला बाद में कर ले |
  ८. घी का दीपक पुजा काल के दोरान जलता रहे | सुगंध आदि के लिए अगरवती आदि लगा दे |फिर आप मंत्र जाप करे और जप पूर्ण होने पर जप समर्पित सद्गुरु जी अथवा यक्षिणी यंत्र पे भी कर सकते है |
  ९. साधना शुरू करने से पहले कुबेर देवता का पूजन अवश्य करे इस से साधना में सफलता की सभावना बढ़ जाती है |

मंत्र –

|| ॐ धं ह्रीं श्रीं रतिप्रिये स्वाहा ||

यह नौ अक्षर का मंत्र है इसका स्वा लाख जप करने से साधक को शीर्घ ही सिद्धि प्राप्त होती है |इस यक्षिणी विशेष मंत्र की आराधना से घर की दरिद्रता दूर हो जाती है |

सर्व फल प्रदायनी सिद्धि यक्षिणी



यह साधना शिव तंत्र नाम की पुस्तक से मुझे प्राप्त हुई थी जिसे मैंने आजमा के देखा है। इस का काफी प्रभाव अनुभूत किया यह साधक के मन में उठने वाली इच्छाओं के जाल को भेद देती है | विभिन्न प्रकार की कामनाओं को पूर्ण कर देती है | साधक की इच्छा से उसे कोई भी वस्तु प्रदान कर देती है | जैसे दुर्लभ जड़ी-बूटी, पुष्प, तांत्रिक वस्तुए और कई प्रकार की दुर्लभ कही जाने वाली समग्री की प्राप्ति का जरिया बना देती है | बस इस साधना में धैर्य की जरूरत होती है साथ ही साथ एक योग्य मार्गदर्शक की भी| इस साधना के प्रभाव से मैंने समस्त प्रकार के बांधे हांसिल किए ऐसी दुर्लव जड़ी बूटी भी हासल की जिस को हाथ में बांध कर साधना करने से तत्काल सिद्धि मिल जाती है देव प्रत्यक्षीकरण हो जाता है यह दुर्लभ वस्तुओँ का उल्लेख करना ठीक नहीं रहेगा इस लिए सीधे साधना पर आते है |                      

विधि –
 इस साधना को एकांत में करना है इस लिए ऐसी जगह चुने जहां कोई आता जाता न हो आप अपने घर में ऐसे कमरे का चयन भी कर सकते है जिस में आपके सिवाय कोई और न जाए |
इस साधना में वस्त्र बिना सिलाई वाले जैसे लाल धोती कंबल आदि धारण किया जा सकता है औरते साड़ी पहन सकती है |
 साधना के समय दीप तेल का जलता रहेगा | धूप गूगल का इस्तेमाल करे |
दिशा उत्तर दिशा की और मुख करे | माला लाल चन्दन की लेनी है |
जहां तक हो सके एक समय भोजन करे |हाँ फल कभी भी लिए जा सकते हैं |
बेजोट पे लाल वस्त्र बिछा दे उस पे एक दूसरे को काटते हुए त्रिकोण बनाए जिसे मैथुन चक्र भी कहते है | यह लाल चन्दन यां कुंकुम से बनाए | उस के बीच एक सुपारी रख से उसके दायी और एक अन्य सुपारी मौली बांध कर रखे जिस पर गणेश जी का पूजन करना है | उस सुपारी का पूजन पंचौपचार से करे गुडहल का लाल रंग  का पुष्प अर्पित करे |
 साधना प्रारंभ होने से पूर्ण होने तक भूमि शयन और ब्रह्मचर्य जरूरी है |
प्रतिदिन मेवा, मिठाई, पान इत्यादि का भोग लगाना आवश्यक है | भोजन ग्रहण करने से पूर्व देवी के लिए भोग पहले निकाल कर रखे उसका भोग लगा कर स्वयं खाये देवी का भोग लगाया हुया भोजन किसी बट वृक्ष के नीचे रख आए साथ में किसी मिट्टी के बर्तन में जल भी साथ रखे और बिना पीछे देखे वापिस आए अगर पीछे से कोई आवाज पड़े तो पीछे मूड कर न देखे यह कर्म तब तक चलेगा जब तक साधना पूर्ण न हो |
कुल सवा लाख मन्त्रों का जप करना है। प्रतिदिन 51 माला  जप अनिवार्य है |
यूं तो मैंने सभी नियम बता दिये है फिर भी कोई कमी लगे तो मुझ से बात कर ले मुझे खुशी होगी आपका मार्गदर्शन करके |

-साबर मंत्र –

|| ॐ श्री काक कमल वर्धने सर्व कार्य सरवाथान देही देही सर्व सिद्धि पादुकाया हं क्षं श्री द्वादशान दायिने सर्व सिद्धि प्रदाया स्वाहा ||


इस मंत्र का सवा लाख जप करे और अंत में गेहूं और चने मिला कर दसवां हिस्सा हवन करे मतलव 12500 मंत्रो से हवन करे | घी में गेहूं और चने मिला ले हवन के लिए | हवन की रात्री साधना कक्ष में ही सोये देवी प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहे तो आप अपनी इच्छा से वर मांग ले | इस प्रकार साधना सिद्ध हो जाती है और साधक की हर कामना पूर्ण होती है | साधना समाप्ती के बाद समस्त पूजन की हुई सामग्री बेजोट पर बिछे वस्त्र में बांध कर जल में प्रवाहित कर दें अथवा किसी निर्जन स्थान पे छोड़ दे |



चेतावनी - यहाँ लिखी गई तंत्र से जुडी सभी साधनाये साधको के ज्ञानवर्धन मात्र के लिए दी गई  है ! यदि कोई साधक कोई भी साधना अथवा प्रयोग करना चाहता है तो गुरु दीक्षा , और गुरु के मारगदर्शन में करे ! बिना गुरु दीक्षा और बिना गुरु आज्ञा भूल कर भी कोई साधना अथवा प्रयोग न करे !

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