
पहला भाई इस तरह गिर गया, उत्तर नहीं दे पाया और पानी पीने की कोशिश की; प्यास ऐसी थी। दूसरा भाई और वही, तीसरा भाई और वही...। और अंत में युधिष्ठिर आए--चारों भाई कहां खो गए? देखा, चारों की लाशें पड़ी हैं झील के तट पर। चारों ने जिद्द की, उत्तर नहीं दे पाए फिर भी पानी पीने की जिद्द की। युधिष्ठिर झुके, यक्ष फिर बोला...। उसमें एक प्रश्न आज के काम का है; सारे प्रश्न अर्थपूर्ण थे, मगर एक प्रश्न यह था कि संसार में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर ने कहा: सबसे बड़ा आश्चर्य यही है कि हम रोज लोगों को मरते देखते हैं, फिर भी यह भरोसा नहीं आता कि मैं मरूंगा!
यह ठीक उत्तर था। सबसे बड़ा आश्चर्य ताजमहल नहीं है, और सबसे बड़ा आश्चर्य इजिप्त के पिरामिड नहीं हैं, और न बेबीलोन का उलटा लटका हुआ गार्डन और न अलेग्जेन्ड्रिया का लाइट हाऊस। ये चमत्कार नहीं हैं, ये बड़े आश्चर्य नहीं हैं। सबसे गहन आश्चर्य यह है कि रोज मरते देखकर भी, रोज लोगों को मरते देखकर, रोज मृत्यु के प्रमाण देखकर भी यह भरोसा आता ही नहीं कि मैं मरूंगा! भरोसे की बात--यह प्रश्न ही नहीं उठता कि मैं मरूंगा। मन कहे चला जाता है, जैसे सदा कोई और मरता है, दूसरा मरता है।
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