Tuesday, 4 October 2016

Hattha Jodi - Siya singi

शत्रु मर्दन.और बड़े बड़े काम चुटकियो में हो जाते है इस साधना से
बाधाओं पर विजय-शत्रु मर्दन-विवाद विजय, शक्ति में निरन्तर वृद्धि।
जीवन में सभी सुख हों पर यदि जरूरत से ज्यादा आलोचक या शत्रु हों जो हमें निरन्तर नीचा दिखाने की फिराक में हों या किसी न किसी प्रकार से हमें परेशान करने की भावना रखते हों, तो हमारे सभी सुख अपने आप में बेकार हो जाते हैं। यही नहीं अपितु यदि हम पर कोई मुकदमा चल रहा हो, या हमने किसी पर मुकदमा दायर कर रखा हो या पड़ोसी अथवा प्रतिद्वन्द्वी बराबर परेशान कर रहा हो और हमें आर्थिक व्यापारिक नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता हो तो यह प्रयोग उत्तम है।
इस प्रयोग से शत्रु का नाश तो होता है और धीरे-धीरे शत्रु परास्त होता हुआ अपने आप में बर्बाद हो जाता है और व्यक्ति आनन्द के साथ जीवन व्यतीत करता है।
हत्था जोड़ी-
हत्था जोड़ी एक वनस्पति है, जो एक विशेष प्रजाति के पौधे की जड़ है। हत्था जोड़ी में मानव भुजा जैसी दो शाखायें होती हैं और उंगलियों के रूप में पंजे की आकृति ठीक इस तरह की होती है जैसे कोई मुट्ठी बंध हो। इस जड़ को निकालकर उसकी दोनों शाखाओ को मोड़कर परस्पर मिला देने पर हत्था जोड़ी बनती है। हत्था जोड़ी बनाने के लिये विशेष प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। यह बहुत ही घने जंगल में पायी जाती है।
हत्था जोड़ी बहुत ही शक्तिशाली व प्रभावकारी वस्तु है मुकदमों, शत्रु संघर्ष, मारण, मूठ प्रयोग आदि बाधाओं के निवारण में प्रभावकारी है। हत्था जोड़ी को तांत्रिक विधि से प्राणप्रतिष्ठित कर दिया जाए तो साधक निश्चित रूप से चामुण्डा देवी का कृपा पात्र बन जाता है। ऐसी सिद्ध हत्था जोड़ी जिसके पास होती है उसके सारे शत्रु स्वतः ही निस्तेज हो जाते हैं। हत्था जोड़ी चामुण्डा देवी का प्रतिरूप है, यह जिसके पास होती है वह अद्भुत रूप से प्रभावशाली तथा सम्मोहन-वशीकरण शक्ति का स्वामी होता है।
साधना विधान:-
शत्रु स्तम्भन, शत्रु मारण और शत्रु विजय का या अपना ट्रासफर अपनी मन पसंद जगह करवना ho अद्वितीय प्रयोग चामुण्डा के तीक्ष्ण मंत्रों से चैतन्य और मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठिायुक्त हत्था जोड़ी पर ही सम्पन्न होता है। हत्था जोड़ी मनुष्य को प्रकृति से प्राप्त एक वरदान हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति जीवन के सारे आनन्द ले पाता है।
यह रात्रिकालीन 11 दिवसीय साधना है, जिसे किसी भी मंगलवार अथवा शनिवार की रात्रि को आरम्भ किया सकता है। साधना करने से पूर्व ही साधना कक्ष को साफ-स्वच्छ कर लें तथा स्वयं गुरु चादर ओढ़ कर साधना सम्पन्न करें। साधक दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर सरसों की ढेरी बना लें तथा उसके दोनों ओर तेल का दीपक लगा ले। सरसों की ढेरी पर हत्था जोड़ी स्थापित कर उस पर कुंकुम से बिन्दी लगावें। उसी कुंकुम से साधक स्वयं भी अपने मस्तक पर तिलक करें।
इसके पश्चात् निम्न मंत्र का 7 बार जप करें, प्रत्येक मंत्र जप के पश्चात् एक लौंग हत्था जोड़ी पर अर्पित करें-
॥ ॐ क्लीं ॐ ॥
इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर मां चामुण्डा से प्रार्थना करें कि -‘भगवती चामुण्डा आप मुझे सर्वत्र विजय प्रदान करें तथा मेरे सभी शत्रुओं का नाश कर दें।’
चामुण्डा के प्रार्थना के पश्चात् काली हकीक माला से चामुण्डा के निम्न तीक्ष्ण मंत्र का 7 माला मंत्र जप करें। मंत्र में जहां ‘अमुक’ शब्द आया है वहां शत्रु के नाम अथवा समस्त शत्रु का उच्चारण करें।
मंत्र:-
॥ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्लीं ह्लीं ‘अमुक’ शत्रु मारय मारय ह्लीं क्रीं क्रीं क्रीं फट्॥
|| Om Kreem Kreem Kreem Hleem Hleem “Amuk” Shatru Maaraye Maaraye Hleem Kreem Kreem Kreem Phat ||
यह साधना 11 दिनों तक नित्य सम्पन्न करें,11 दिनों की साधना सम्पन्न करने के पश्चात् बारहवें दिन प्रातः समस्त साधना सामग्री को लाल वस्त्र में बांध कर किसी सूनसान जगह पर भूमि में गड्डा खोदकर गाड़ दें। इस प्रकार यह विशिष्ट प्रयोग सम्पन्न होता है। कुछ ही दिनों में इस साधना का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है।
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