Sunday, 21 February 2016

पारस पत्थर

एक दृष्टान्त है कि अति प्राचीन समय में एक बार पूरे सन्सार के बड़े बड़े विद्वानो, ऋषियों, महर्षियो की सभा हुई और इस बैठक का उद्देश्य था की ये जानना की इस संसार में वो कौन सी चीज है जो सबसे जरुरी है और जिसके बिना बिल्कुल ही काम नहीं चल सकता !! काफी देर तक चर्चा हुई। कई अलग – अलग मत और तर्क, अलग – अलग लोगो द्वारा प्रकट किये गए पर अंतिम निर्णय नहीं निकल पा रहा था।


किसी ने कहा अन्न ही श्रेष्ठ है क्योकि इसके बिना जीवन ही समाप्त हो जाता है पर किसी विद्वान ने इसका जवाब दिया कई जीव ऐसे है जो बिना किसी ठोस पदार्थ के केवल जल पी कर ही पूरा जीवन बिता देते है इसलिए अन्न नहीं बल्कि जल ही सबसे जरुरी और श्रेष्ठ पदार्थ है। फिर किसी ने प्रत्युत्तर दिया की कई योगी बिना जल पीये वर्षो तक रहते है तो जल कैसे सबसे जरुरी हुआ ? फिर कुछ लोगो ने कहा की सबसे जरुरी वायु है जिसके
बिना एक साँस भी लेना असम्भव है। इसका जवाब कुछ लोगो ने दिया की योगियों की चरम अवस्था यानि समाधि अवस्था में वायु की कैसी उपयोगिता।


तो फिर इस अनिर्णय की स्थिति में कुछ दिव्य दृष्टि प्राप्त विद्वानो ने कहा की सबसे श्रेष्ठ और सबसे जरुरी ईश्वर है जो सबको दिखते तो नहीं पर सब कारणों के कारण वही है। वही ईश्वर अपनी स्वतन्त्र इच्छा से इस संसार को प्रकट करते है और फिर अपनी ही इच्छा से इस संसार को अपने में ही समा लेते है। वो ईश्वर ऐसा क्यों करते है ? उनको ऐसा करने में क्या आनन्द मिलता है ? और आनन्द मिलता भी है की नहीं ? वो ईश्वर ऐसी
दुनिया पहले कितनी बार बना चुके है और आगे कितनी बार बनाएगे ? वो अकेले रहते है की कोई उनका साथी भी है ? वो रहते कहा है, क्या खाते है क्या पहनते है ? उनकी आयु क्या है और वो दिखते कैसे है ? उनके पास इतनी ज्यादा जादुई ताकत कैसे आई की वो एक पल से भी कम समय में पूरी नयी दुनिया पैदा कर सकते है ? आखिर वो ईश्वर चाहते क्या है ? ऐसे हजारो प्रश्न ऐसे है जिनका पूरा जवाब सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही जानते है।


वैसे तो कई धार्मिक ग्रन्थ है जो ईश्वर के बारे में, ईश्वर की सोच के बारे में और ईश्वर के कामो के बारे में कुछ जानकारिया देते है लेकिन ईश्वर अनन्त है तो ऐसे अनन्त ईश्वर की जानकारिया भी अन्त हीन है। मानव जीवन मिलने का सबसे बड़ा उद्देश्य यही है की आदमी ईश्वर के रहस्य को सुलझाये, ना की जानवरो की तरह केवल घर, खाना और बच्चे पैदा करने जैसी चीजो में ही पूरा जीवन बिता दे। ईश्वर का रहस्य सुलझाने में सबसे
बड़ी समस्या यही आती है की लोगो को यह समझ में नहीं आता की ऐसे कठिन और हमेशा गायब रहने वाले ईश्वर को हम कहा और कैसे ढूंढे !! ईश्वर को ढूढ़ने का जो सबसे आसान तरीका हमारे धर्म ग्रन्थ बताते है वो है कि ईश्वर के बारे में अधिक से अधिक सोचना।


अब ईश्वर के बारे में सोचने में दिक्कत ये आती है की ईश्वर दीखते कैसे है, तो इसका भी आसान तरीका है कि ईश्वर के अलग अलग अवतारों में जो भी अवतार पसंद हो (चाहे – राम, शिव , कृष्ण , गणेश या दुर्गा, लक्ष्मी , सरस्वती या गायत्री कोई भी रूप ) उस रूप का कोई भी मनपसंद सुन्दर और प्रेम युक्त चेहरे वाले चित्र का बार बार मन में ध्यान करना और उन्ही रूप के नाम का बार – बार मन में या मुह से बोलना। जैसे – किसी को ईश्वर के
ही अवतार रूप – भगवान शिव बहुत अच्छे लगते है तो वो शिव भगवान के एक सुन्दर चित्र का बार बार मन में ध्यान करे और मन में या मुह से बार शिव शिव बोले, तो इस प्रक्रिया को बोलते है ईश्वर का ध्यान करना। तो ईश्वर का ध्यान करने से फायदा होता क्या है ? विद्वानो ने ईश्वर की तुलना पारस पत्थर से की है क्योकि जैसे पारस पत्थर से छूने वाला हर लोहा सोना में बदल जाता है उसी तरह ईश्वर के बारे में लगातार सोचने वाला
आदमी धीरे – धीरे खुद ही ईश्वर बन जाता है !!


शुरुआत के कई दिनों तक ईश्वर के बारे में लगातार सोचने पर अनेक जन्मो के जाने अनजाने खुद से किये गए पापो का नाश होने लगता है जिससे धीरे – धीरे सारी बीमारियो में अपने आप ही आराम मिलने लगता है और इसके आलावा और भी जो सामाजिक दिक्कत होती है जैसे धन की कमी, राज दण्ड, अपमान या कोई भी तकलीफ हो उन सबमे भी अपने आप ही आराम मिलने लगता है। और इतना ही नहीं धीरे – धीरे ईश्वर का ध्यान करने में बहुत आनन्द भी आने
लगता है और कुछ समय बाद शरीर में कई अच्छी विलक्षण विशेषताए प्रकट होने लगती है। और कई वर्षो बाद आदमी की साधना की अन्तिम अवस्था में ईश्वर का दर्शन भी होता है। ईश्वर के दर्शन के बाद आदमी की सारी शंकाओ, सारी चिन्ताओ का समाधान निश्चित ही हो जाता है और आदमी एक अति दिव्य सुख और आनन्द को हर समय महसूस करने लगता है। इसलिए ऐसे पारस पत्थर स्वरूप भगवान का हम क्यों ना करे ध्यान !!!

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